संदेश

जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Bhartrihari Neeti shatak: भर्तृहरि ने बताए हैं मनुष्यों के तीन प्रकार : ऐसे लोगों से बचकर रहें

चित्र
भर्तृहरि उज्जयिनी (आधुनिक उज्जैन) के राजा थे। अपनी सबसे प्रिय रानी पिंगला के धोखे से आहत होकर उनके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे अपना राजपाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंपकर तपस्या करने के लिए एक गुफा में चले गए। लोग भर्तृहरि को बाबा भरथरी के नाम से भी जानते हैं। कई वर्षों की तपस्या के उपरांत उन्होंने शृंगार शतक, नीति शतक और वैराग्य शतक नामक तीन ग्रन्थों की रचना की। प्रत्येक ग्रंथ में १०० श्लोक होने के कारण इन्हें शतक कहा गया। आज हम इसी शतकत्रयी के एक ग्रंथ 'नीति शतक' के एक श्लोक की चर्चा करेंगे जो हमारे व्यावहारिक और सामाजिक जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। अज्ञ: सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ:। ज्ञानलव दुर्विदग्धम् ब्रह्मापि नरं न रंजयति॥ उक्त श्लोक में भर्तृहरि ने बताया है कि इस संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं- अज्ञ, विशेषज्ञ और अल्पज्ञ। अज्ञ- अज्ञ मनुष्य वे होते हैं जिन्हें अच्छे-बुरे, उचित-अनुचित का कोई ज्ञान नहीं होता। ये कोरे कागज की भाँति होते हैं। ऐसे मनुष्य आपका कहना सरलता से मान लेते हैं। इनको मनाना और संतुष्ट करना आसान होता है। विशेषज्...

हिंदी कहानी- आखिरी चिट्ठी

चित्र
'आपकी कलम से' स्तम्भ के इस अंक में प्रस्तुत है समकालीन साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर रामनगीना मौर्य की हिंदी कहानी- आखिरी चिट्ठी कु छ जरूरी कार्यवश जन्म-तिथि प्रमाण-पत्र की आवश्यकता थी। जिसके लिये आलमारी में वर्षों से सहेज कर रखे, फोल्डर के भीतर मौजूद सभी जरूरी कागज-पत्रों को उलटते-पलटते, हाईस्कूल-सर्टिफिकेट खोजते, उन्हीं कागजों के बीच अचानक एक पुराना लिफाफा भी हाथ लगा। लिफाफे को उलट-पलट कर देखते, उसके पीछे प्रेषक की जगह लिखे महेश, तथा प्रेषित में अपना नाम, पता देखते ही ध्यान आया, अरे...ये तो महेश की भेजी हुई, तेईस-चौबीस बरस पुरानी चिट्ठी है। इतनी पुरानी चिट्ठी देख मन, मयूर हो उठा। नाॅस्टैल्जिया-भाव रूपी झूले संग पींगे भरते स्मृतियां हिलोरे मारने लगीं। ये चिट्ठियों की खूबी ही है कि लिखने वाला सामने न होते हुए भी, पढ़ते समय बतियाता महसूस होता है। उसके शब्द, उसकी भाषा, हमें उसके अपने आसपास होने का आभास तो कराती ही हैं, उस संग बिताए पलों को स्मृतियों के श्वेत-श्याम कोलाॅज से भी बना कर प्रस्तुत करती हैं। मुझे याद है...यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद, हम दोस्तों के बीच भी काफी वर्षों तक ख...

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की ओजपूर्ण कविता- कलम आज उनकी जय बोल

चित्र
जला अस्थियाँ बारी-बारी, चटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल। कलम आज उनकी जय बोल। जो अगणित लघु दीप हमारे, तूफानों में एक किनारे, जल-जलकर बुझ गए किसी दिन, माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल। कलम आज उनकी जय बोल। पीकर जिनकी लाल शिखाएँ, उगल रही सौ लपट दिशाएँ, जिनके सिंहनाद से सहमी, धरती रही अभी तक डोल। कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा, क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के, सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल। कलम आज उनकी जय बोल। - राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर'

युवा साहित्यकार अरविन्द यादव की कविताएं

चित्र
'आपकी कलम से' के इस अंक में प्रस्तुत हैं युवा साहित्यकार अरविंद यादव की कविताएँ (1) कविता _______ कविता नहीं है सिर्फ साधन मन-रंजन का साधना एक स्रष्टा की कविता नहीं है गठजाेड़ सिर्फ शब्दों का तमीज़ भाषा और अभिव्यक्ति की कविता आईना है अखिल समाज का पहचान सभ्यता, संस्कार की कविता करती है विरेचित मलिन भाव मन के शुद्धता कलुषित अन्त:करण की कविता प्रस्फुटित करती है पत्थरों से भी उत्स संवेदनाओं के कविता सेतु है उस स्रोतस्विनी का पुलिन यथार्थ और आदर्श जिसके कविता बनाती है हिंसक वृत्तियाें काे इंसान जगाकर उनमें मानवता कविता नहीं करती भेद ऊँच-नीच, अकिंचन -राजा समदृष्टि पहचान कविता की कविता जब हुंकारती आवाज बन निर्बल की डगमगाते मठ, महल और सिंहासन कविता उखाड़ फेंकती उन दिग्गज दरख्ताें काे छाया तले जिनके, नहीं पनपते छाेटे से छाेटे वृक्ष । (2) चाटुकारिता ___________            चाटुकारिता एक ऐसी कला जाे पहुँचा देती है व्यक्ति काे उन्नति के उत्तुंग शिखर पर हरि व्यापक सर्वत्र समाना के समान मिल जाते हैं चाटुकार भी हर जगह आजकल चाटुकारिता दिलाती है ऊँचे से ऊँ...