Bhartrihari Neeti shatak: भर्तृहरि ने बताए हैं मनुष्यों के तीन प्रकार : ऐसे लोगों से बचकर रहें
भर्तृहरि उज्जयिनी (आधुनिक उज्जैन) के राजा थे। अपनी सबसे प्रिय रानी पिंगला के धोखे से आहत होकर उनके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे अपना राजपाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंपकर तपस्या करने के लिए एक गुफा में चले गए।
लोग भर्तृहरि को बाबा भरथरी के नाम से भी जानते हैं।
कई वर्षों की तपस्या के उपरांत उन्होंने शृंगार शतक, नीति शतक और वैराग्य शतक नामक तीन ग्रन्थों की रचना की। प्रत्येक ग्रंथ में १०० श्लोक होने के कारण इन्हें शतक कहा गया। आज हम इसी शतकत्रयी के एक ग्रंथ 'नीति शतक' के एक श्लोक की चर्चा करेंगे जो हमारे व्यावहारिक और सामाजिक जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है।
अज्ञ: सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ:।
ज्ञानलव दुर्विदग्धम् ब्रह्मापि नरं न रंजयति॥
उक्त श्लोक में भर्तृहरि ने बताया है कि इस संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं- अज्ञ, विशेषज्ञ और अल्पज्ञ।
अज्ञ- अज्ञ मनुष्य वे होते हैं जिन्हें अच्छे-बुरे, उचित-अनुचित का कोई ज्ञान नहीं होता। ये कोरे कागज की भाँति होते हैं। ऐसे मनुष्य आपका कहना सरलता से मान लेते हैं। इनको मनाना और संतुष्ट करना आसान होता है।
विशेषज्ञ- ऐसे मनुष्य जिन्हें नीति,धर्म और लोकव्यवहार का पूर्ण ज्ञान होता है। इन्हें अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का सदैव भान रहता है। ये देशकाल और परिस्थितियों के अनुरूप ही आचरण करते हैं। चूँकि ऐसे विशेषज्ञ मनुष्यों का व्यक्तित्व सुलझा हुआ होता है इसलिए इनको समझाना तथा संतुष्ट करना और भी आसान होता है।
अल्पज्ञ- संसार में तीसरे प्रकार के मनुष्य ऐसे होते हैं जिन्हें ज्ञान तो बहुत थोड़ा होता है किन्तु अपने आपको ब्रह्मांड का सबसे बड़ा ज्ञानी समझते हैं। ऐसे लोग अपने मद में ही चूर रहते हैं और सही बात को भी मानने के लिए तैयार नहीं होते। भर्तृहरि कहते हैं कि अपने अल्पज्ञान की अग्नि में बुरी तरह झुलसने वाले ऐसे दंभी मनुष्यों को स्वयं ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।
हमें अपने सामाजिक जीवन में ऐसे दंभी और अहंकारी लोगों से वाद-विवाद की स्थिति को सदैव टालने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे अल्पज्ञ मनुष्य अपने अहं को तुष्ट करने के लिए तथा समाज में अपनी छ्द्म श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए मर्यादा का भी उल्लंघन कर जाते हैं।
इस प्रकार के लोग अवसर मिलने पर आपको नीचा दिखाने और आपका अपमान करने से भी नहीं हिचकते। अतः इस प्रकार के मनुष्यों से बचकर रहने में ही भलाई है।
भर्तृहरि गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे।
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