युवा साहित्यकार अरविन्द यादव की कविताएं

'आपकी कलम से' के इस अंक में प्रस्तुत हैं युवा साहित्यकार अरविंद यादव की कविताएँ

हिंदी कविता

(1)

कविता
_______

कविता नहीं है सिर्फ
साधन मन-रंजन का
साधना
एक स्रष्टा की

कविता नहीं है
गठजाेड़ सिर्फ शब्दों का
तमीज़
भाषा और अभिव्यक्ति की


कविता आईना है
अखिल समाज का
पहचान
सभ्यता, संस्कार की

कविता करती है विरेचित
मलिन भाव मन के
शुद्धता
कलुषित अन्त:करण की

कविता प्रस्फुटित करती है
पत्थरों से भी
उत्स
संवेदनाओं के

कविता सेतु है उस
स्रोतस्विनी का
पुलिन
यथार्थ और आदर्श जिसके

कविता बनाती है
हिंसक वृत्तियाें काे
इंसान
जगाकर उनमें मानवता

कविता नहीं करती भेद
ऊँच-नीच, अकिंचन -राजा
समदृष्टि
पहचान कविता की

कविता जब हुंकारती
आवाज बन निर्बल की
डगमगाते
मठ, महल और सिंहासन

कविता उखाड़ फेंकती
उन दिग्गज दरख्ताें काे
छाया तले
जिनके, नहीं पनपते छाेटे से छाेटे वृक्ष ।

(2)

चाटुकारिता
___________
          
चाटुकारिता
एक ऐसी कला
जाे पहुँचा देती है व्यक्ति काे
उन्नति के उत्तुंग शिखर पर

हरि व्यापक सर्वत्र समाना
के समान
मिल जाते हैं चाटुकार भी
हर जगह आजकल

चाटुकारिता दिलाती है
ऊँचे से ऊँचे ओहदे
धकेलकर उनकाे पीछे
जाे हाेते हैं उस ओहदे के
असली हकदार

चाटुकारिता पहुँचाती है
सत्ता के उस सुख तक
जाे नहीं मिलता उनकाे
जाे करते हैं ताउम्र
कठिन संघर्ष

चाटुकारिता दिला देती है
वह प्रसिद्ध,पुरस्कार और सम्मान
जाे नहीं मिलता बहुतों काे
मरने के बाद भी

चाटुकारिता बना देती है
असंभव काे संभव
निसंदेह वर्तमान की
सबसे बड़ी प्रतिभा
बन गई है चाटुकारिता।

(3)

आखिरी संस्कार
______________

वह उँगली जिसे थाम
रखा था पहला लड़खड़ाता कदम
नापने को घर का आँगन

वह कंधे जिन पर बैठकर
देखे थे अनगिनत मेले
न जाने कहाँ कहाँ

वह बाँहें जिन्होंने झुलाया था
झूले की तरह
बिना थके दिन रात

वह आँखें जाे चमक उठती थीं
मिट्टी खाते देख अपने भाग्य को
आँगन के काेने में

लहराते मिट्टी के ढेल लगते थे सहारा जिसे
जीवन की साँझ से
अंतिम यात्रा और आखिरी संस्कार के

मिट्टी सने मुख में दिखाई देता था जिसे
उगता सूर्य
अपने सौभाग्य का

वह कमर जाे बन गई कमान
उठाते -उठाते ताउम्र
जिम्मेदारियों का वोझ

किन्तु आज उन दौड़ते कदमों से उठती धुंध में
जाने कहाँ खाे गए
ख्वाब सब अतीत के

आज उस आँगन में जहाँ गूंजती थीं
उन्मुक्त किलकारियाँ
खड़ी है ऊँची दीवार संवेदनहीनता की

जिसने बाँट दिया है घर का आँगन
नल का पानी
और पेड़ की छाँव

अब हाेली के रंग और दीवाली के दीप
फाँदकर नहीं आते
ऊँची दीवार

आज उन धुंधली आँखाें में
आशा है ताे सिर्फ उस संवेदना की
जाे खींच लाए अंतिम बार
आखिरी संस्कार काे

(4)

आज नहीं तो कल
_______________

आज दम तोड रही हैं
मानवता के लिए घातक
वह परम्पराएँ
जो डसती आ रही हैं
सदियों से
मानव और मानवता को,
उस कुचले सााँप की मानिंद
जो फड़फड़ाता है
थोडी देर अपनी पूँछ
कुचले जाने के बाद भी.

शायद यह सोचकर
कि फिर से
उडेल सके अपना संचित विष
स्वस्थ समाज के अंश पर,
यह भूलकर कि कुचला गया है वह
मानवता के लिए
इसी घातक प्रवृत्ति पर.

काश !
वह सीख पाता
जीने का सलीका
अपने ही कुल के दोमुंहे से
तो आज नहीं होता
उसका यह हश्र.

मगर वह भूल गया
यह कटु यथार्थ
कुचले ही जाते हैं
' घातक' मानवता के
आज नहीं तो कल....

(5)

धार्मिक उन्माद का खौफ
___________________

धर्म का झंडा लेकर चलने वालो
भूल गए अयोध्या ,गुजरात, पंजाब
सब के सब लहूलुहान हैं
धार्मिक उन्माद के खौफ से
आज भी अंकित हैं जिसके धब्बे
इतिहास के सीने पर

आज भी सुनाई  देती है कानों को
सरेआम लुटती अस्मिता की चीखें

आज भी तैरती हैं आँखों के सामने
हाथ- पैर कटी अधजली लाशे
बदहवास दौड़ते
चीखते -चिल्लाते लोग

आज भी दिखाई  देता है
वह बहता हुआ रक्त
जो न मुसलमान था न हिंदू
न सिक्ख न ईसाई
देखने से, सूंघने से

आज भी उतर आते हैं जहन में
बेक़सूर, मासूम, दुधमुहें बच्चे
जिनके लिए दुनियां सिर्फ और सिर्फ
थी एक खिलौना

आज भी दिखाई देते हैं
असंख्य उन्मादी चेहरे
हवा में लहराते त्रिशूल और तलवार

आज भी खौफजदा दिखती हैं वह खिड़कियाँ
जिनने देखा था वह वीभत्स मंजर

आज भी सहमी सीं लगती हैं वह गलियाँ
सहमे से लगते हैं वह चौराहे
जो रक्त रंजित हुए थे
जयघोष से

अगर फिर हुई पुनरावृत्ति
तो निश्चय ही खंडित होगी 
देश की एकता, अखंडता ।

कवि-परिचय

कविता - अरविंद यादव

अरविंद यादव
शिक्षा-  एम.ए. (हिन्दी), नेट , पीएच-डी.
प्रकाशन - समाधान खण्डकाव्य, पाखी, समहुत, कथाक्रम, अक्षरा, विभोम स्वर ,सोचविचार, सेतु , समकालीन अभिव्यक्ति, किस्सा कोताह, तीसरा पक्ष, ककसाड़, प्राची, दलित साहित्य वार्षिकी, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, विचार वीथी, लोकतंत्र का दर्द, शब्द सरिता, निभा, मानस चेतना, अभिव्यक्ति, ग्रेस इंडिया टाइम्स, विजय दर्पण टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

सम्मान- कन्नौज की अभिव्यंजना साहित्यिक संस्था से सम्मानित
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा सम्मानित
सम्प्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर - हिन्दी,
जे.एस. विश्वविद्यालय शिकोहाबाद ( फिरोजाबाद), उ. प्र.।
पता- मोहनपुर, लरखौर, जिला - इटावा (उ.प्र.)
पिन -  206130
सम्पर्क सूत्र-9410427215
Email- arvindyadav25681@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. अरविंद यादव युवा कवि हैं । नई पीढ़ी के कवि हैं । रचनात्मक उपस्थिति में शिव कुशवाहा , रोहित ठाकुर , राहुल बोयल , अमर दलपुरा , मिथिलेश कुमार राय , घनश्याम त्रिपाठी , अंजन कुमार , श्रुति कुशवाहा , आरती तिवारी , अर्चना लार्क , इत्यादि के साथ सामने आते हैं । इन सभी कवियों के कथ्य , शिल्प , भाषा , मुहावरे , असमान होते हुए भी विषय के चयन और संवेदना का भाव समान रुप से मानवीय तथा सरोकारी हैं । इन कवियों के यहां यद्यपि अभी , अपनी पहचान के लिए स्पष्ट भाषा , शिल्प या कि बिम्ब विधान का संकट कम नहीं हुआ है फिर विश्वास बनता है कि ये बेहतर रुप में सामने आएंगे । अरविंद यादव की काव्य क्षमता व दृष्टि भी अभी इन्हीं के साथ है

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