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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिंदी कविता : पुष्प की अभिलाषा- चाह नहीं मैं सुरबाला के

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ। चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।। चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ। चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ, भाग्य पर इतराऊँ।। मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।।                                                'माखनलाल चतुर्वेदी'

बेहतरीन ग़ज़ल | Famous ghazal- एक पल में एक सदी का मज़ा

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए। दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए।। भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम। किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए।। आगाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए। अंजाम-ए-आशिक़ी का मजा हमसे पूछिए।। जलते दियों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ। सरकार-ए-रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए।। वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है। आँखों की मुखबिरी का मज़ा हमसे पूछिए।। हँसने का शौक हमको भी था आपकी तरह। हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए।।                                                'ख़ुमार बाराबंकवी'

हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान | Hindi Hindu Hindustan

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चित्र : साभार google image हिंदी हिंदुस्तान की सर्वप्रमुख भाषा है, किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि 'हिंदी' शब्द की उत्पत्ति के लिए भारतीय नहीं अपितु वैदेशिक कारक उत्तरदायी हैं।  'सिन्धु' शब्द का भारतवर्ष से गहरा सम्बन्ध है। भारत की पहचान में सिन्धु का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जब ईरान के लोग भारत आए तो उन्होंने सिन्धु को हिन्दु कहा, क्योंकि फ़ारसी में 'स' वर्ण का उच्चारण 'ह' के रूप में किया जाता है। इस तरह के उच्चारण के कारण सिन्धु शब्द परिवर्तित होकर हिंदु हो गया और सिन्धु प्रदेश के निवासी हिंदु या हिन्दू हो गए। इस प्रकार हिन्दू का अर्थ हुआ हिन्द का रहने वाला और हिन्दी का मतलब हिन्द का । कालांतर में इनकी भाषा भी हिन्दवी या हिंदी बोली जाने लगी। समय के साथ आर्यावर्त और भारतवर्ष के साथ-साथ हिंदुस्तान शब्द का भी प्रयोग होने लगा। वस्तुतः  "हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान" के मूल में यही तथ्य विद्यमान है। अब आइए हिंदी की उत्पत्ति के विषय में कुछ और विचार करें... हिंदी भाषा का जन्म कब हुआ इस संबंध में यद्यपि को...

अश्लील-हरिशंकर परसाई का व्यंग्य

समाज में अश्लील साहित्य के बढ़ते प्रचार-प्रसार पर सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का यह व्यंग्य आज भी प्रासंगिक है। फर्क इतना है कि किताबों की जगह आज इंटरनेट और स्मार्टफोन ने ले ली है। आइए पढ़ते हैं पूरे समाज को आईना दिखाता हुआ यह व्यंग्य- 'अश्लील'। शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं। दस-बारह उत्‍साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्‍य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक होली जलाएँगे।   उन्‍होंने एक दुकान पर छापा मारकर बीच-पच्‍चीस अश्‍लील पुस्‍तकें हाथों में कीं। हर एक के पास दो या तीन किताबें थीं। मुखिया ने कहा- आज तो देर हो गई। कल शाम को अखबार में सूचना देकर परसों किसी सार्वजनिक स्‍थान में इन्‍हें जलाएँगे। प्रचार करने से दूसरे लोगों पर भी असर पड़ेगा। कल शाम को सब मेरे घर पर मिलो। पुस्‍तकें में इकट्ठी अभी घर नहीं ले जा सकता। बीस-पच्‍चीस हैं। पिताजी और चाचाजी हैं। देख लेंगे तो आफत हो जाएगी। ये दो-तीन किताबें तुम...

हिंदी कविता- ऐ मेरे दोस्त

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ऐ मेरे दोस्त! मैं अब तक नहीं समझ पाया कि यूँ तुम्हारे आने में दिल-ओ-दिमाग़ पे छा जाने में आख़िर बात क्या है तुम्हारे आकर चले जाने में तुम जो आए तो मेरे दिल ने आहिस्ता ये मुझसे पूछा था कि अब उसे लौटकर आने की ज़रूरत क्या थी दर्द बनकर जो मिलन का एक-एक लम्हा जिस्म से रूह तक समाया हो उसे बस एक ज़रा सी रस्म निभाने की ज़रूरत क्या थी और अब एक बार फिर जब तुम जा रहे हो धडकनें एक मासूम सा सवाल करती हैं क्या जाना जरुरी है? ऐ मेरे ....... दोस्त!

चार वेद, छ: शास्त्र, अठारह पुराण | 4 Ved 6 Shastra 18 Puranas

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चार वेद 4 ved में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का गूढ़ ज्ञान समेटे हुए सनातन धर्म Sanatan dharma विश्व का प्राचीनतम धर्म है ।  इसकी समस्त मान्यताएँ और परम्पराएँ पूर्णतः वैज्ञानिक हैं ।  वस्तुतः यह एक जीवन शैली है जो मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। जैन धर्म हो या सिख धर्म या फिर बौद्ध धर्म सब इसी सत्य सनातन धर्म रूपी वट-वृक्ष की ही शाखाएँ-प्रशाखाएँ हैं।  इस पर आधारित अग्रोल्लिखित साहित्य समुच्चय (चार वेद, छह शास्त्र, अट्ठारह पुराण आदिक) विश्व भर में अद्वितीय है। चार वेद -  यह तो सर्वविदित है कि  "वेद कितने हैं "। वेदों की संख्या चार हैै जिसे वेद-चतुष्टयी कहा जाता है। चार वेदों 4 ved के नाम क्रमानुसार निम्नलिखित हैं : ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद ऋग्वेद को विश्व का प्राचीनतम साहित्य होने का गौरव प्राप्त है । उपवेद - चारों वेदों के क्रमशः चार उपवेद हैं, जो निम्नवत् हैं :  स्थापत्य या शिल्पवेद धनुर्वेद गंधर्ववेद आयुर्वेद उपनिषद् ईश उपनिषद केन उपनिषद कठ उपनिषद अथवा कठोपनिषद प्रश्न उपनिषद मुण...

बच के रहना रे बाबा !

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वर्तमान समाज में कुछ तथाकथित संत और धर्माचार्य ऐसे भी हैं जो अपना 'कल्याण' करने में तो कदाचित् सफल हैं किन्तु उनके आडंबरपूर्ण आचरण और कपोल कल्पित धर्मोपदेशों से समाज को बहुत बड़ी हानि हो रही है। साथ ही इन छद्मवेषधारी संतों के कारण धर्म और धार्मिकता को भी बहुत बड़ी हानि हो रही है। इनके कारण आज समाज के सभी साधु-संत और उपदेशक संदेह की दृष्टि से देखे जा रहे हैं। जो हमारे समाज लिए किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं है।  आज समाज में व्याप्त धार्मिक विकृतियों और विद्रूपताओं के लिए ये तथाकथित धर्मोद्धारक कम उत्तरदायी नहीं हैं। इस समय चतुर्दिक धर्म का विकृत रूप दृष्टिगोचर होता है। धार्मिक कट्टरता, दुराग्रह, और अन्य धर्मों के प्रति विद्वेष की भावना परिलक्षित हो रही है। छोटी-छोटी बातों पर लोग आक्रोशित हो जाते हैं और धर्म के मूल स्वरूप और और उद्देश्य को भूलकर आचरण करने लगते हैं। यह सब इन्हीं पथभ्रष्टकों का प्रभाव है। ये धर्म के ठेकेदार धर्म के नाम पर समाज को जोड़ने का नहीं अपितु तोड़ने का काम कर रहे हैं, जिसके लिए हमें जागरूक होने की आवश्यकता है। ध्यान रहे ऐसे तथाकथित धर्मगुरु के...

एक शेर : वफ़ा के शहर में

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वफ़ा के शहर में तेरी गली बदनाम लिख दूँगा, साँसों की सदा पर मौत का पैग़ाम लिख दूँगा । उठेगा दर्द जब दिल में  तुम्हारे वास्ते 'पंकज', उमीदों की चिता पर बस तुम्हारा नाम लिख दूँगा।। बालकृष्ण द्विवेदी 'पंकज' ➤ यह भी पढ़ें -   चंद अशआर

हिंदी भाषा की विशेषताएँ : जानें हिंदी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

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" हिन्दी भारतीय संस्कृति की आत्मा है"-'कमलापति त्रिपाठी' हिंदी भाषा विशाल जनसमूह की भाषा है, जो सीमाओं के बंधन तोड़कर, आज वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। वैसे तो, प्रत्येक भाषा की विशेषता होती है कि वह व्यक्ति के विचारों और मनोभावों को स्पष्ट एवं प्रभावी रूप से व्यक्त करने का एक माध्यम होती है लेकिन हिंदी भाषा की कतिपय विशेषताएं ('विशेषताएँ' शुद्ध है) उसे अन्य भाषाओं से अलग और खास बनाती हैं। आइए, हम हिंदी भाषा की ऐसी ही कुछ विशेषताओं और तथ्यों के बारे में जानते हैं- हिंदी का उद्भव भाषाओं की जननी, देवभाषा संस्कृत से हुआ है जो आज भी तकनीकी क्षेत्र (कंप्यूटर आधारित प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बौद्धिकता इत्यादि) में प्रयोग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानी जा रही है। हिंदी भाषा का व्याकरण संस्कृत से ही अनुप्राणित है। स्वाभाविक रूप से इसके व्याकरणिक नियम प्रायः अपवाद-रहित हैं; इसलिए स्पष्ट हैं और आसान हैं।    "हिंदी भाषा संस्कृत की बड़ी बेटी कही जाती है।" हिंदी की वर्णमाला दुनिया की सर्वाधिक व्यवस्थित वर्णमाला है। इसमें स्वरो...