गौरैया और कुछ अन्य कविताएँ : रोहित ठाकुर

'आपकी कलम से' स्तम्भ के अंतर्गत प्रस्तुत हैं- ख्यातिलब्ध समकालीन कवि रोहित ठाकुर की कुछ कविताएँ [ गौरैया ] गौरैया को देखकर कौन चिड़िया मात्र को याद करता है गौरैया की चंचलता देखकर बेटी की चंचल आँखें याद आती हैं पत्नी को देखता हूँ रसोई में हलकान गौरैया याद आती है एनीमिया से पीड़ित एक परिचित लड़की कंधे पर हाथ रखती है एक गौरैया भर का भार महसूस करता हूँ अपने कंधे पर गौरैया को कौन याद करता है चिड़िया की तरह । [ जाल ] उस जाल का बिम्ब जो छान ले तमाम दुःख जीवन से और सुख की मछलियाँ मानस में तैरती रहें हम मामूली लोगों की कल्पना में रह - रह कर आता है। [ गिनती ] किसी भी चीज को ऊँगलियों पर गिनता हूँ उदासी के दिनों को ख़ुशी के दिनों को ट्रेन के डिब्बों को पहाड़ को नदी को थाली में रोटी को तुम्हारे घर लौटने के दिनों को जब ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना तो अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती हैं इस गणतंत्र में । [ कविता ] कविता में भाषा को लामबन्द कर लड़ी जा सकती हैं लड़ाईयांँ पहाड़ पर मैदान में दर्रा में खेत में चौराहे पर पराजय के ब...