गौरैया और कुछ अन्य कविताएँ : रोहित ठाकुर
'आपकी कलम से' स्तम्भ के अंतर्गत प्रस्तुत हैं- ख्यातिलब्ध समकालीन कवि रोहित ठाकुर की कुछ कविताएँ
[ गौरैया ]
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं बया, हंस, वागर्थ, पूर्वग्रह ,दोआबा , तद्भव, कथादेश, आजकल, मधुमती आदि में कविताएँ प्रकाशित ।
विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों - हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में कविताएँ प्रकाशित ।
100 से अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित ।
कविताओं का मराठी और पंजाबी भाषा में अनुवाद प्रकाशित ।
पत्राचार का पता -
[ गौरैया ]
गौरैया को देखकर
कौन चिड़िया मात्र को याद करता है
गौरैया की चंचलता देखकर
बेटी की चंचल आँखें याद आती हैं
पत्नी को देखता हूँ रसोई में हलकान
गौरैया याद आती है
एनीमिया से पीड़ित एक परिचित लड़की
कंधे पर हाथ रखती है
एक गौरैया भर का भार
महसूस करता हूँ अपने कंधे पर
गौरैया को कौन याद करता है चिड़िया की तरह ।
[ जाल ]
कौन चिड़िया मात्र को याद करता है
गौरैया की चंचलता देखकर
बेटी की चंचल आँखें याद आती हैं
पत्नी को देखता हूँ रसोई में हलकान
गौरैया याद आती है
एनीमिया से पीड़ित एक परिचित लड़की
कंधे पर हाथ रखती है
एक गौरैया भर का भार
महसूस करता हूँ अपने कंधे पर
गौरैया को कौन याद करता है चिड़िया की तरह ।
[ जाल ]
उस जाल का बिम्ब
जो छान ले तमाम दुःख
जीवन से
और
सुख की मछलियाँ
मानस में तैरती रहें
हम मामूली लोगों की
कल्पना में
रह - रह कर आता है।
[ गिनती ]
किसी भी चीज को ऊँगलियों पर गिनता हूँ
उदासी के दिनों को
ख़ुशी के दिनों को
ट्रेन के डिब्बों को
पहाड़ को
नदी को
थाली में रोटी को
तुम्हारे घर लौटने के दिनों को
जब ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना
तो अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती हैं
जो छान ले तमाम दुःख
जीवन से
और
सुख की मछलियाँ
मानस में तैरती रहें
हम मामूली लोगों की
कल्पना में
रह - रह कर आता है।
[ गिनती ]
किसी भी चीज को ऊँगलियों पर गिनता हूँ
उदासी के दिनों को
ख़ुशी के दिनों को
ट्रेन के डिब्बों को
पहाड़ को
नदी को
थाली में रोटी को
तुम्हारे घर लौटने के दिनों को
जब ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना
तो अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती हैं
इस गणतंत्र में ।
[ कविता ]
कविता में भाषा को
लामबन्द कर
लड़ी जा सकती हैं लड़ाईयांँ
पहाड़ पर
मैदान में
दर्रा में
खेत में
चौराहे पर
पराजय के बारे में
न सोचते हुए ।
[ रेलगाड़ी ]
[ कविता ]
कविता में भाषा को
लामबन्द कर
लड़ी जा सकती हैं लड़ाईयांँ
पहाड़ पर
मैदान में
दर्रा में
खेत में
चौराहे पर
पराजय के बारे में
न सोचते हुए ।
[ रेलगाड़ी ]
दूर प्रदेश से
घर लौटता आदमी
रेलगाड़ी में लिखता है कविता
घर से दूर जाता आदमी
रेलगाड़ी में पढ़ता है गद्य
घर जाता हुआ आदमी
कितना तरल होता है
घर से दूर जाता आदमी
हो जाता है विश्लेषणात्मक।
घर से दूर जाता आदमी
रेलगाड़ी में पढ़ता है गद्य
घर जाता हुआ आदमी
कितना तरल होता है
घर से दूर जाता आदमी
हो जाता है विश्लेषणात्मक।
कवि-परिचय
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं बया, हंस, वागर्थ, पूर्वग्रह ,दोआबा , तद्भव, कथादेश, आजकल, मधुमती आदि में कविताएँ प्रकाशित ।
विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों - हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में कविताएँ प्रकाशित ।
100 से अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित ।
कविताओं का मराठी और पंजाबी भाषा में अनुवाद प्रकाशित ।
पत्राचार का पता -
रोहित ठाकुर
C/O – श्री अरुण कुमार
सौदागर पथ,
काली मंदिर रोड के उत्तर,
संजय गांधी नगर , हनुमान नगर , कंकड़बाग़
पटना, बिहार
पिन – 800026
मोबाइल नम्बर - 6200439764
ई-मेल : rrtpatna1@gmail.com
यदि आप भी अपनी रचनाएँ "हिंदीजन डॉट कॉम" पर प्रकाशित कर प्रतिदिन हजारों पाठकों तक पहुँचना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।
C/O – श्री अरुण कुमार
सौदागर पथ,
काली मंदिर रोड के उत्तर,
संजय गांधी नगर , हनुमान नगर , कंकड़बाग़
पटना, बिहार
पिन – 800026
मोबाइल नम्बर - 6200439764
ई-मेल : rrtpatna1@gmail.com
यदि आप भी अपनी रचनाएँ "हिंदीजन डॉट कॉम" पर प्रकाशित कर प्रतिदिन हजारों पाठकों तक पहुँचना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपके बहुमूल्य सुझाव की प्रतीक्षा में...