रात आधी खींच कर मेरी हथेली - हरिवंशराय बच्चन की कविता

"रात आधी खींचकर मेरी हथेली" यह सुंदर कविता "कोशिश करने वालों की हार नहीं होती" का सुंदर संदेश देने वाले प्रख्यात कवि और लेखक 'हरिवंशराय बच्चन' ने लिखी  जिनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी लोकप्रिय कृति 'मधुशाला' की पंक्तियाँ हर साहित्य प्रेमी की जुबान पर होती हैं। सूफी दर्शन से ओतप्रोत 'मधुशाला' एक ऐसी अनुपम कृति है जिसकी प्रसिद्धि के आयाम को २०वीं सदी के बाद की कोई दूसरी रचना अब तक नहीं प्राप्त कर पायी है।

मधुशाला के अलावा भी हरिवंश राय बच्चन की अन्य रचनाएँ जैसे मधुकलश, निशा निमंत्रण, धार के इधर उधर, मिलन यामिनी, आकुल अंतर, प्रणय पत्रिका इत्यादि सब एक से बढ़कर एक हैं और सभी रचनाएँ भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टिकोण से श्रेष्ठ हैं।

लेकिन मित्र, आज हम यहाँ बात कर रहे हैं हरिवंशराय बच्चन जी की एक खूबसूरत कविता की जो शायद हिंदी साहित्य में लिखी गई सर्वश्रेष्ट प्रेम कविताओं व प्रेम गीतों में स्थान पाने की योग्यता रखती है। प्रेम और वेदना की जिस भाव-भूमि पर उतर कर कवि ने इस कविता को रचा है वह किसी भी सहृदय के के मन के तारों को झंकृत कर देने के लिए काफी है।सोने पे सुहागा यह कि इसका शिल्प-विधान और शब्द चयन भी उनकी अन्य रचनाओं की तरह ही उत्कृष्ट है। यह बात अलग है कि यह रचना, पता नहीं क्यों, उतनी प्रसिद्ध नहीं हुई जितना  इसे वास्तव में होना चाहिए था।



आइये पढ़ते हैं हरिवंशराय बच्चन की कविता (harivansh rai bachchan poem in hindi) - 


"रात आधी खींचकर मेरी हथेली"



:हरिवंश राय बच्चन की कविता - रात आधी खींच कर मेरी हथेली पढ़ें भारतीहिंदी ब्लॉग पर
एक उँगली से लिखा था प्यार तुमने!


रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने।

फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी।
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी।

मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा सा और अधसोया हुआ सा।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने।

एक बिजली छू गई सहसा जगा मैं
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में।
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।

मैं लगा दूँ आग इस संसार में
है प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।
जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने।

प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ उजाले में अँधेरा डूब जाता।
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी
खूबियों के साथ परदे को उठाता।

एक चेहरा सा लगा तुमने लिया था
और मैंने था उतारा एक चेहरा।
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने,
पर ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने।

और उतने फ़ासले पर आज तक
सौ यत्न करके भी न आये फिर कभी हम।
फिर न आया वक्त वैसा
फिर न मौका उस तरह का
फिर न लौटा चाँद निर्मम।

और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं?
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।

रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने।


आपको रात आधी कविता कैसी लगी, अवश्य बताएँ।



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