डॉ.विष्णु सक्सेना की लोकप्रिय कविता-रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।।
मैं तो पतझर था फिर क्यूँ निमंत्रण दिया,
ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुये।
आस मन में लिये प्यास तन में लिये,
कब शरद आयी पल्लू समेटे हुये।
तुमने फेरीं निगाहें अँधेरा हुआ,
ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं।।
मैं तो होली मना लूँगा सच मानिए,
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो।
मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा,
तुम मुझे मेरे पँखों का आकाश दो।
उँगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम,
यूँ करोगे तो दिल चुप रहेगा नहीं।।
आँख खोली तो तुम रुक्मिणी सी लगी,
बन्द की आँख तो राधिका तुम लगीं।
जब भी सोचा तुम्हें शांत एकांत में,
मीराबाई सी एक साधिका तुम लगी।
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो,
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं।।
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।।
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।।
मैं तो पतझर था फिर क्यूँ निमंत्रण दिया,
ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुये।
आस मन में लिये प्यास तन में लिये,
कब शरद आयी पल्लू समेटे हुये।
तुमने फेरीं निगाहें अँधेरा हुआ,
ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं।।
मैं तो होली मना लूँगा सच मानिए,
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो।
मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा,
तुम मुझे मेरे पँखों का आकाश दो।
उँगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम,
यूँ करोगे तो दिल चुप रहेगा नहीं।।
आँख खोली तो तुम रुक्मिणी सी लगी,
बन्द की आँख तो राधिका तुम लगीं।
जब भी सोचा तुम्हें शांत एकांत में,
मीराबाई सी एक साधिका तुम लगी।
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो,
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं।।
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपके बहुमूल्य सुझाव की प्रतीक्षा में...