Ghazal | मैं अपने साथ ग़ज़ल की किताब रखता हूँ

पेश है एक नई गजल Ghazal बिल्कुल नए अंदाज़ में- लब पे शबनम मगर सीने में आग रखता हूँ। हर एक सवाल का सीधा जवाब रखता हूँ।। रोक ले मुझको ज़माना ये कहाँ मुमकिन है, मैं अपने दिल में जज़्ब-ए-इंक़लाब रखता हूँ।। उनसे कह दो कि भूल जायें मुक़ाबिल होना। मैं अब चराग़ों की जगह आफ़ताब रखता हूँ।। उनकी रुसवाइयों का और ग़िला क्या करना। बस अपने साथ गजल की किताब रखता हूँ।। बाल कृष्ण द्विवेदी 'पंकज' मेरी यह नई Ghazal आपको कैसी लगी? कृपया अपनी राय अवश्य दें। यह भी पढ़ें: इस पार प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा चित्र : साभार गूगल