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दर्द भरी शायरी-दर्द की इंतिहा

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दर्द की इंतिहा हुई फिर से। लो तेरी याद आ गई फिर से।। फिर कहाँ चढ़ रहा है रंग-ए-हिना। कहाँ बिजली सी गिर गई फिर से।। बंदिशें तोड़ के, ठुकरा के लौट आया है। दिल को ग़फ़लत सी हो गई फिर से।। वही ख़ुशबू जो बस गयी है मेरे सीने में। अश्क़ बनकर छलक गई फिर से।। बाल कृष्ण द्विवेदी 'पंकज'