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एक शेर-ग़मों में मुस्कुराना

परिन्दे आँधियों में आशियाना ढूँढ़ लेते हैं ! बंजारे कहीं भी इक ठिकाना ढूँढ़ लेते हैं !! ग़मों की राह के हम भी मुसाफ़िर थे कभी यारों, ग़मों में भी मगर अब मुस्कुराना ढूँढ़ लेते हैं !! बालकृष्ण द्विवेदी 'पंकज'