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हरिशंकर परसाई का व्यंग्य-अश्लील

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अश्लील   हरिशंकर परसाई    शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं। दस-बारह उत्‍साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्‍य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक होली जलाएँगे। उन्‍होंने एक दुकान पर छापा मारकर बीच-पच्‍चीस अश्‍लील पुस्‍तकें हाथों में कीं। हर  एक  के पास दो या तीन किताबें थीं। मुखिया ने कहा - आज तो देर हो गई। कल शाम को अखबार में सूचना देकर परसों किसी सार्वजनिक स्‍थान में इन्‍हें जलाएँगे। प्रचार करने से दूसरे लोगों पर भी असर पड़ेगा। कल शाम को सब मेरे घर पर मिलो। पुस्‍तकें में इकट्ठी अभी घर नहीं ले जा सकता। बीस-पच्‍चीस हैं। पिताजी और चाचाजी हैं। देख लेंगे तो आफत हो जाएगी। ये दो-तीन किताबें तुम लोग छिपाकर घर ले जाओ। कल शाम को ले आना।

कोई दीवाना कहता है-डॉ. कुमार विश्वास

आधुनिक हिंदी काव्य में लोकप्रिय कवि एवं राजनेता कुमार विश्वास का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं।आइए पढ़ते हैं उनका बहुचर्चित गीत "कोई दीवाना कहता है"- कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है मोहब्बत एक एहसासों की, पावन सी कहानी है कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँखों में आंसू है जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है